कलम
कागज़
और खुद को
लेकर बैठा
लिखने एक कविता
मन की गलियों
में भटका
और झाँका दिल
के भीतर
दिल में मिली
कुछ ख्वाहिशे
और मन में
थोड़ा सा
तजुर्बा
मीठे-मीठे लफ्ज़ों
से ख्वाहिशों
को लिखा
तजुर्बों
के लफ्ज़
थे ज़रा
से तीखे
मीठे लफ्ज़ों ने तीखो
को ललकारा
बहस हई जबरदस्त
खिंच गयी विभाजन
की रेखा
नहीं चाहता था
वक़्त गवाना
किसी को लुभाने
और किसी को मनाने
में
इसलिए तीखें-मीठे
लफ्ज़ों को गोली
मारी
और खून
से सने
अपने हाथों
को धोकर
फेंक दी कविता
अधूरी!
एक कविता के खून का इल्जाम है मुझ पर! जाँच-पड़ताल हो सकती है। फिर पाठको की पंचायत में फैसला होगा। कुछ समय लिखने पर भी प्रतिबन्ध लगाया जा सकता है । और हो सकता है तन्हाई की जेल में आजीवन कारावास की सजा सुना दी जाये।
अगर ऐसा हुआ तो बचाव पक्ष कवियों की महफ़िल में सजा कम कराने की अपील करेगा ।
धन्यबाद!
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