वो नहीं है इसका गम न हो

वो थी ये वजह शुक्रगुज़ार होने को क्या कम है ?

दुनिया से पर्दा रोशनियों का बुझना तो नहीं

क्योंकि चिराग तो यूँ बुझाया गया है

कि सुबह होने को है।

~ रविंद्रनाथ टैगोर

Friday 26 June 2020

शक्कर के पांच दाने

मैं निराशा से सम्पूर्ण
देख रहा था 
ज़मीन पे पड़े हुए
शक्कर के पांच दाने 
जिन्हे धीरे धीरे 
चीटियां उठा रही थी 
अपने सर पे
मेरी निराशा से परे 
वो शायद शाम के नाश्ते का इंतजाम कर रही थी 
और में उनकी भूख से बेफिक्र बेखबर 
देख रहा था उनके साहस को 
न मैं उन्हें जानता था 
और न वो मुझे 
हमारे दरमियान थे तो बस 
शक्कर के पांच दाने।

Monday 22 June 2020

लेखक

Don't describe what happened, tell me how it affects me

महज दो-चार पंक्तियां लिखने के लिए जनाब
मैं घंटों दीवार ताका करता हूँ

महाशय!सच बताता हूँ, लेखक हूँ
बेमतलब बेकार की बातें करता हूँ

महफ़िल में वाह वाही के मोती पाने के चक्कर मे 
कल्पनाओ के सागर में डुबकिया लगाया करता हूँ

कभी कभी इतना मदहोश हो जाता हूं
आसमान को ज़मीन से मिलाने की हिमाकत करता हूँ!

एक हसीना के धोखे का कुछ इस कदर हुआ ज़ुल्म मुझ पे
प्रेम गीत छोड़ , क्रांति और विद्रोह लिखा करता हूँ!

हुए है इश्क़ में फिर ऐसे बर्बाद
चांद सितारों में मेहबूबा खोजा करता हूँ

महाशय!सच बताता हूँ, लेखक हूँ
बेमतलब बेकार की बातें करता हूँ

मैंने है किया आविष्कार
भूतो का प्रेतो का

शैतान के खूंखार मंसूबों का
जो डर गए सो देवी देवताओं के रूपों का

धन्य हो गए प्रभु जो उनके गुडगान करता हूं
सत्य नहीं अपने अनुभव भर साझा करता हूं

समस्त ब्रह्माण्ड की घटनाओं से
कोई सरोकार नहीं मेरा
 
बस चंचल मन की व्यथा सुनाके
अपने जी को हल्का करता हूं

भूखो को रोटी तो देता नहीं 
उनकी लाचारी लिखकर पैसे कमाया करता हूँ

महाशय!सच बताता हूँ, लेखक हूँ
बेमतलब बेकार की बातें करता हूँ

 

Don’t tell me the moon is shining; show me the glint of light on broken glass.

– Anton Chekhov

 

 











हवाओ का कोई हुक्मरान नहीं
फिर भी सारे जग को नचाया करती है

नदियां किसी हमसफ़र की मोहताज नहीं
वो खुद ही समंदर खोज लिया करती है

बीज को अक्ल की जरूरत ही नहीं
प्रकृति उसे पेड़ बनाया करती है

चांद को महबूब की कोई तमन्ना नहीं 
चांदनी बस रातें जगमगाया करती है 

दिखता हो वो सच हो ज़रूरी नहीं
आंखें अक्सर झूठ कहा करती है

हकीकत से वास्ता तो मेरा भी नहीं
कहानियां झूठी तो तसल्ली दिया करती है

मैं कोई कविताएं लिखता नहीं
तन्हाई सुकून की ख्वाहिश करती है

यूं तो घड़ियां वक़्त की खातिर थमती नहीं
यहां पल में सदियां ठहर जाया करती है

करते हो इबादत जिसकी उसका इल्म नहीं
बस दुआए दर्द मिटाया करती है!