वो नहीं है इसका गम न हो

वो थी ये वजह शुक्रगुज़ार होने को क्या कम है ?

दुनिया से पर्दा रोशनियों का बुझना तो नहीं

क्योंकि चिराग तो यूँ बुझाया गया है

कि सुबह होने को है।

~ रविंद्रनाथ टैगोर

Monday, 22 June 2020

लेखक

Don't describe what happened, tell me how it affects me

महज दो-चार पंक्तियां लिखने के लिए जनाब
मैं घंटों दीवार ताका करता हूँ

महाशय!सच बताता हूँ, लेखक हूँ
बेमतलब बेकार की बातें करता हूँ

महफ़िल में वाह वाही के मोती पाने के चक्कर मे 
कल्पनाओ के सागर में डुबकिया लगाया करता हूँ

कभी कभी इतना मदहोश हो जाता हूं
आसमान को ज़मीन से मिलाने की हिमाकत करता हूँ!

एक हसीना के धोखे का कुछ इस कदर हुआ ज़ुल्म मुझ पे
प्रेम गीत छोड़ , क्रांति और विद्रोह लिखा करता हूँ!

हुए है इश्क़ में फिर ऐसे बर्बाद
चांद सितारों में मेहबूबा खोजा करता हूँ

महाशय!सच बताता हूँ, लेखक हूँ
बेमतलब बेकार की बातें करता हूँ

मैंने है किया आविष्कार
भूतो का प्रेतो का

शैतान के खूंखार मंसूबों का
जो डर गए सो देवी देवताओं के रूपों का

धन्य हो गए प्रभु जो उनके गुडगान करता हूं
सत्य नहीं अपने अनुभव भर साझा करता हूं

समस्त ब्रह्माण्ड की घटनाओं से
कोई सरोकार नहीं मेरा
 
बस चंचल मन की व्यथा सुनाके
अपने जी को हल्का करता हूं

भूखो को रोटी तो देता नहीं 
उनकी लाचारी लिखकर पैसे कमाया करता हूँ

महाशय!सच बताता हूँ, लेखक हूँ
बेमतलब बेकार की बातें करता हूँ

 

Don’t tell me the moon is shining; show me the glint of light on broken glass.

– Anton Chekhov

 

 








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