मैं निराशा से सम्पूर्ण
देख रहा था
ज़मीन पे पड़े हुए
शक्कर के पांच दाने
जिन्हे धीरे धीरे
चीटियां उठा रही थी
अपने सर पे
मेरी निराशा से परे
वो शायद शाम के नाश्ते का इंतजाम कर रही थी
और में उनकी भूख से बेफिक्र बेखबर
देख रहा था उनके साहस को
न मैं उन्हें जानता था
और न वो मुझे
हमारे दरमियान थे तो बस
शक्कर के पांच दाने।
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