वो नहीं है इसका गम न हो

वो थी ये वजह शुक्रगुज़ार होने को क्या कम है ?

दुनिया से पर्दा रोशनियों का बुझना तो नहीं

क्योंकि चिराग तो यूँ बुझाया गया है

कि सुबह होने को है।

~ रविंद्रनाथ टैगोर

Friday, 26 June 2020

शक्कर के पांच दाने

मैं निराशा से सम्पूर्ण
देख रहा था 
ज़मीन पे पड़े हुए
शक्कर के पांच दाने 
जिन्हे धीरे धीरे 
चीटियां उठा रही थी 
अपने सर पे
मेरी निराशा से परे 
वो शायद शाम के नाश्ते का इंतजाम कर रही थी 
और में उनकी भूख से बेफिक्र बेखबर 
देख रहा था उनके साहस को 
न मैं उन्हें जानता था 
और न वो मुझे 
हमारे दरमियान थे तो बस 
शक्कर के पांच दाने।

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