हवाओ का कोई हुक्मरान नहीं
फिर भी सारे जग को नचाया करती है
नदियां किसी हमसफ़र की मोहताज नहीं
वो खुद ही समंदर खोज लिया करती है
बीज को अक्ल की जरूरत ही नहीं
प्रकृति उसे पेड़ बनाया करती है
चांद को महबूब की कोई तमन्ना नहीं
चांदनी बस रातें जगमगाया करती है
दिखता हो वो सच हो ज़रूरी नहीं
आंखें अक्सर झूठ कहा करती है
हकीकत से वास्ता तो मेरा भी नहीं
कहानियां झूठी तो तसल्ली दिया करती है
मैं कोई कविताएं लिखता नहीं
तन्हाई सुकून की ख्वाहिश करती है
यूं तो घड़ियां वक़्त की खातिर थमती नहीं
यहां पल में सदियां ठहर जाया करती है
करते हो इबादत जिसकी उसका इल्म नहीं
बस दुआए दर्द मिटाया करती है!
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