वो नहीं है इसका गम न हो

वो थी ये वजह शुक्रगुज़ार होने को क्या कम है ?

दुनिया से पर्दा रोशनियों का बुझना तो नहीं

क्योंकि चिराग तो यूँ बुझाया गया है

कि सुबह होने को है।

~ रविंद्रनाथ टैगोर

Monday, 22 June 2020




हवाओ का कोई हुक्मरान नहीं
फिर भी सारे जग को नचाया करती है

नदियां किसी हमसफ़र की मोहताज नहीं
वो खुद ही समंदर खोज लिया करती है

बीज को अक्ल की जरूरत ही नहीं
प्रकृति उसे पेड़ बनाया करती है

चांद को महबूब की कोई तमन्ना नहीं 
चांदनी बस रातें जगमगाया करती है 

दिखता हो वो सच हो ज़रूरी नहीं
आंखें अक्सर झूठ कहा करती है

हकीकत से वास्ता तो मेरा भी नहीं
कहानियां झूठी तो तसल्ली दिया करती है

मैं कोई कविताएं लिखता नहीं
तन्हाई सुकून की ख्वाहिश करती है

यूं तो घड़ियां वक़्त की खातिर थमती नहीं
यहां पल में सदियां ठहर जाया करती है

करते हो इबादत जिसकी उसका इल्म नहीं
बस दुआए दर्द मिटाया करती है!

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