वो नहीं है इसका गम न हो

वो थी ये वजह शुक्रगुज़ार होने को क्या कम है ?

दुनिया से पर्दा रोशनियों का बुझना तो नहीं

क्योंकि चिराग तो यूँ बुझाया गया है

कि सुबह होने को है।

~ रविंद्रनाथ टैगोर

Wednesday, 29 May 2013

                                                                       '' उदासी ''

खुद की खुद की कैसी ये जंग है,
जिन्दगी के तो बिखरे सारे रंग है ।  

खामोशी है लबों पे,
मायूसी है दिल में छायी,
टूटे बिखरे अरमान सारे,
मैंने  तो केवल उदासी ही पाई । 

मन में बची अब न कोई आस है,
हर पल न जाने किसकी तलाश है । 

खोये खोये से रहते है,
भाता है ये अकेलापन,
भीड़ अब सताती है,
गुमसुम सा रहता है मेरा मन । 

जो चाहा है वो मिल न सका,
 जिन्दगी के बगीचे में कोई फूल खिल न सका । 

आँसू  भी सूख गए ये सारे,
आखों ने पी लिए ये गम हमारे,
जिन्दगी में अजीब सा खालीपन है,
जाने कहाँ खोया हुआ मेरा मन है ॥  

 @shubhendu chaudhary

Monday, 27 May 2013



 "  क्या चाहते है हम ..? "

दो पल की ख़ुशी, ये दो पल का गम 
आने वाले पलो की आहट से 
जाने इतना क्यों घबराते है हम ?

विचारो के समुन्दर में डूबे रहते 
मन की गलियों में क्या खोजते है हम ?

जीवन की पहेली को सुलझाते रहते 
आखिर क्या जानना  चाहते है हम ?

ओढे गमो की चादर रहते 
फिर खुशियों को क्यों तलाशते है हम ?

खुद की गलतियों को छुपाते रहते 
दूसरों की कमियों को क्यों तलाशते है हम ?

 खुद से तो प्यार करते नहीं 
फिर दूसरों पर इतना क्यों मरते है हम ?

इश्वर की भक्ति तो कभी करते नहीं 
फिर उनसे इतना क्यों डरते है हम ?

जिन्दगी की परवाह तो करते नहीं 
फिर साला मौत से इतना क्यों घबराते है हम ?

मिलना तो इस मिटटी में ही है 
फिर जिन्दगी भर इस मिटटी से क्यों भागते है हम ?

''कभी समय मिले तो पूछना खुद से 
आखिर खुद से क्या चाहते है हम ?''
     


Birth will ask a question and perhaps death would answer that......!!!!

@shubhendu chaudhary