वो नहीं है इसका गम न हो

वो थी ये वजह शुक्रगुज़ार होने को क्या कम है ?

दुनिया से पर्दा रोशनियों का बुझना तो नहीं

क्योंकि चिराग तो यूँ बुझाया गया है

कि सुबह होने को है।

~ रविंद्रनाथ टैगोर

Friday, 21 October 2016

खोज



एक कविता खोज रहा हूँ,


मेहबूबा का रूठना हो,
आशिक की जिद् हो।          

दोस्ती की महक हो,
प्यार का एहसास हो।

सूरज सा तेज हो,
चाँद सा धैर्य हो।

जो थोड़ी चटपटी हो,
शक्कर सी मीठी हो,
खाने में बड़ी ही स्वादिष्ट हो,

धोनी के छक्के हो,
गूलजार सी लिखावट हो,
अभिताभ का अभिनय हो,

जो मेरे अंदर ही है कहीं
उसे बाहर में खोज रहा हूँ।

मैं एक कविता खोज रहा हूँ।







उड़ता पंछी करे कमाल!

उड़ता पंछी करे कमाल,
उड़ते उड़ते उड़ता जाये,
उड़ते उड़ते गाने गाये
उड़ते उड़ते जीना सीखे,
उड़ते करता लाखों बवाल,
उड़ता पंछी करे कमाल।


चाहे जिस डाली पे बैठे,
बैठे बैठे नज़ारे देखे हज़ार
इसपे किसी की रोक नहीं,
आज़ादी है इसकी दुकान,
उड़ता पंछी करे कमाल।

आसमाँ में बसती देखो उसकी जान,
उड़ना ही है बस एक पहचान,
नेचर से है प्रेम लड़ाये,
करतब अपने सबको दिखाये,
अपनी ही धुन में देखो ये है सवार,
उड़ता पंछी करे कमाल ।

कैद क्यों हो?
पिंजरे से निकलो,
ख्वाबो के तुम पंख ले लो,
मेरी मानो तुम भी उड़ लो,
उड़ने में ही मज़ा।

उड़ते उड़ते मौज मानाओ
उड़ते उड़ते जीलो गाओ
उड़ते उड़ते उड़ते जाओ
उड़ता पंछी करे कमाल।










लो आज मैं खडी हूँ तुम्हारे सामने,
खामोश सा चेहरा लिए,
मैं खडी हूँ तुम्हारे सामने,
आओ और मुझे चीर दो, फाड् दो,
टुकडे कर  दो मेरे,
मेरे जिस्म के हर एक अंग का लुफ्त उठाओ,
मेरे बालों को पकड़ो और घसीट दो जमीन पे,
और लगाओ तमाचे गालों पे,
कूटों, पीटो और मारो जब तक तुम थक नहीं जाते।
जब थक जाओ तो बता देना,
मैं बालों को सवार कर, मरहम पट्टी कर,
फिर खड़ी हो जाउंगी!
ताकि तुम फिर मर्द बन सको !!

सुनो सजनिया।

सुनो सजनिया,
दिल की बातें दिल ही जाने,
पर हम तो तुम पे मर गए,

सुनो सजनिया
मिलके तुमसे ,
हम तो बावरे हो गए,

चेहरा तेरा जैसे कोई नूर हो,
हम तो देखते ही रह गए,

बातें तेरी है समंदर ,
जिसमे हम तो डूब गए,

सुनो सजनिया
हमरे बगल में बैठ लो,
हाथ थामो,
थोडा हमको चूम लो।

तेरी ज़ुल्फो के साये मे,
ज़िन्दगी ये काट दूं,

आँखें तेरी है नशीली,
जाम आंसू के हमको बाँट दो,

सुनो सजनिया,
अरे!
सुनो सजनिया।