वो नहीं है इसका गम न हो

वो थी ये वजह शुक्रगुज़ार होने को क्या कम है ?

दुनिया से पर्दा रोशनियों का बुझना तो नहीं

क्योंकि चिराग तो यूँ बुझाया गया है

कि सुबह होने को है।

~ रविंद्रनाथ टैगोर

Friday, 21 October 2016

खोज



एक कविता खोज रहा हूँ,


मेहबूबा का रूठना हो,
आशिक की जिद् हो।          

दोस्ती की महक हो,
प्यार का एहसास हो।

सूरज सा तेज हो,
चाँद सा धैर्य हो।

जो थोड़ी चटपटी हो,
शक्कर सी मीठी हो,
खाने में बड़ी ही स्वादिष्ट हो,

धोनी के छक्के हो,
गूलजार सी लिखावट हो,
अभिताभ का अभिनय हो,

जो मेरे अंदर ही है कहीं
उसे बाहर में खोज रहा हूँ।

मैं एक कविता खोज रहा हूँ।







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