वो नहीं है इसका गम न हो

वो थी ये वजह शुक्रगुज़ार होने को क्या कम है ?

दुनिया से पर्दा रोशनियों का बुझना तो नहीं

क्योंकि चिराग तो यूँ बुझाया गया है

कि सुबह होने को है।

~ रविंद्रनाथ टैगोर

Saturday, 21 January 2017

मुसाफिर!


चलता मुसाफिर
चलता रहेगा 

शाम होगी
सूरज ढलता रहेगा
फिर होगा सवेरा
मुसाफिर बढ़ता रहेगा

चलना मुसाफिर 
चलना ही तो है
गिरना मुसाफिर
संभलना ही तो है

अब हम भला कहे क्या तुमको
मंज़िल की कब परवाह थी हमको
हम है मुसाफिर
राहे ही मंज़िल
राहों में हमको भटकना ही  तो है

अरे मुसाफिर
थोड़ी थी धूप थोड़ा था छाव
थोड़े थे पैरो में छाले
थोड़े थे आँखों में सपने
थोड़ी सी ज़िद्द थी थोड़ा सा लड़कपन
और थोड़े से हम
वो थोड़े से तुम
मुसाफिर!


Photograph: clicked at Dhurwa Dam,Ranchi,India

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