वो नहीं है इसका गम न हो

वो थी ये वजह शुक्रगुज़ार होने को क्या कम है ?

दुनिया से पर्दा रोशनियों का बुझना तो नहीं

क्योंकि चिराग तो यूँ बुझाया गया है

कि सुबह होने को है।

~ रविंद्रनाथ टैगोर

Monday, 15 August 2016

The writer wants to write!

एक विचार,फिर दूसरा विचार
पहला अपनी प्रस्तुती दर्ज कराना चाहता,
दूसरा भी अपना वज़न दिखाने की कोशिश करता,
इन विचारो का आपस में इतना मतभेद,
कि कोई भी पीछे नहीं हटता।

मेरी लिखावट अधूरी रह जाती
इन विचारो के चक्कर में।

विचारो के मतभेद को जैसे तैसे शांत किया,
एक विचार की टांग पकड़कर उसे डायरी में डाला,

तो शब्द उछल उछल कर अपनी दावेदारी पेश करने लगे,
शब्दो की इस भीड़ में कुछ को चुनना बेहद मुश्किल,
एक को न्यौता दो,तो दूसरा रूठ जाता
तीसरे का दामन पकड़ो तो पहला कभी वापस न आने की धमकी देता।

मेरी लिखावट अक्सर अधूरी रह जाती
इन शब्दो के चक्कर में।



Saturday, 6 August 2016

लाल सिग्नल

सिग्नल पे कुछ सामान बेचते हुए बच्चे ,
अक्सर मुझे मेरी बेबसी का एहसास दिलाते है,
बहुत लाचार सा महसूस करता हूँ !
वो बच्चे उम्मीदों की निग़ाहों से मुझे देखते,
कहने को तो सिर्फ पेन या पेंसिल बेच रहे होते,
पर उनकी आँखों मुझसे कुछ और ही कहती,
गाडी का शीशा खोल, पर्स में से दस रूपये का नोट निकाल उन्हें थमा देता हूँ !
सिग्नल हरा हो जाता है ,गाडी आगे बढ़ जाती है
आजकल वक़्त ही कहाँ है हमारे पास, ऐसे सिग्नल पे रुकने का!!
बस उन्ही से खरीदे हुए पेन से ये कविता लिख दी या फिर मेरी लाचारी|