सिग्नल पे कुछ सामान बेचते हुए बच्चे ,
अक्सर मुझे मेरी बेबसी का एहसास दिलाते है,
बहुत लाचार सा महसूस करता हूँ !
वो बच्चे उम्मीदों की निग़ाहों से मुझे देखते,
कहने को तो सिर्फ पेन या पेंसिल बेच रहे होते,
पर उनकी आँखों मुझसे कुछ और ही कहती,
गाडी का शीशा खोल, पर्स में से दस रूपये का नोट निकाल उन्हें थमा देता हूँ !
सिग्नल हरा हो जाता है ,गाडी आगे बढ़ जाती है
आजकल वक़्त ही कहाँ है हमारे पास, ऐसे सिग्नल पे रुकने का!!
बस उन्ही से खरीदे हुए पेन से ये कविता लिख दी या फिर मेरी लाचारी|
अक्सर मुझे मेरी बेबसी का एहसास दिलाते है,
बहुत लाचार सा महसूस करता हूँ !
वो बच्चे उम्मीदों की निग़ाहों से मुझे देखते,
कहने को तो सिर्फ पेन या पेंसिल बेच रहे होते,
पर उनकी आँखों मुझसे कुछ और ही कहती,
गाडी का शीशा खोल, पर्स में से दस रूपये का नोट निकाल उन्हें थमा देता हूँ !
सिग्नल हरा हो जाता है ,गाडी आगे बढ़ जाती है
आजकल वक़्त ही कहाँ है हमारे पास, ऐसे सिग्नल पे रुकने का!!
बस उन्ही से खरीदे हुए पेन से ये कविता लिख दी या फिर मेरी लाचारी|
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