वो नहीं है इसका गम न हो

वो थी ये वजह शुक्रगुज़ार होने को क्या कम है ?

दुनिया से पर्दा रोशनियों का बुझना तो नहीं

क्योंकि चिराग तो यूँ बुझाया गया है

कि सुबह होने को है।

~ रविंद्रनाथ टैगोर

Sunday, 26 June 2016

जहाँ कहीं भी हो जिन्दगी

आओ थोडा वक़्त निकाले,
जहाँ कहीं भी हो ज़िन्दगी,
उसको मिलकर खोजे।

आओ थोडा मिलकर खेले,
जहाँ कहीं भी हो ज़िन्दगी,
उसको थप्पा पेले।

आओ बंद दरवाज़े फिर से खोले,
जहाँ कहीं भी हो ज़िन्दगी,
उसे बिस्तर बनाकर सोले।

आओ थोडा आज झूमे,
जहाँ कहीं भी हो ज़िदंगी,
उसे गले लगाकर चूमे।

आओ भूली बिसरी गलियों में थोडा भटके,
जहाँ कहीं भी हो ज़िन्दगी,
उसे हाथ खोलकर लपके।

आओ दिल में उमंगें नयी भर ले,
जहाँ कहीं भी हो ज़िन्दगी,
उससे मोहब्बत करले।। || 

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