वो नहीं है इसका गम न हो

वो थी ये वजह शुक्रगुज़ार होने को क्या कम है ?

दुनिया से पर्दा रोशनियों का बुझना तो नहीं

क्योंकि चिराग तो यूँ बुझाया गया है

कि सुबह होने को है।

~ रविंद्रनाथ टैगोर

Thursday, 28 December 2017

क्रांति!

बर्फ-सा जम गया है खून तेरा,
क्रांति की नदियाँ क्यों आज निकलती नहीं ?

चारदीवारी में कैद कब तब रहेगा,
तेरा बिना कोई हुकूमत कभी हिलती नहीं!

कितनी सदियों से है मुझे इंतज़ार तेरा,
तुझे है कि जन्नत से फुर्सत मिलती नहीं !

इतिहास से चर्चे तेरे सुने कई मग़र ,
मेरे अपने क़िसी किस्से से गुफ्तगू हुई ही नहीं!

हो रहा जश्न आज़ादी के नाम पे ,
इंकलाब की गोलियां क्यों आज चलती नहीं ?
 



 

Wednesday, 6 December 2017

खोया खोया चाँद!



है अँधेरा बहुत आज 
रौशनी कहीं भी नहीं 

बादलो में जा छुपा है वो कहीं 
उसे शायद मेरी खबर ही नहीं 

सदियों से लम्बी लगती ये रातें 
चंद करवटों में सिमटती ही नहीं 

आके ज़रा सी तसल्ली वो दे दे 
क्या उस खुदा को इतनी फुर्सत भी नहीं 

आवारा कब तक फिरें इन गलियों में 
मंजिलो का अब तक कोई इशारा ही नहीं 

खोया खोया  है चाँद जरूर आज 
मग़र अब हर रात अमावस्या की काली रात भी तो नहीं !



 Photograph: clicked at Khurai,MP ,India