वो नहीं है इसका गम न हो

वो थी ये वजह शुक्रगुज़ार होने को क्या कम है ?

दुनिया से पर्दा रोशनियों का बुझना तो नहीं

क्योंकि चिराग तो यूँ बुझाया गया है

कि सुबह होने को है।

~ रविंद्रनाथ टैगोर

Wednesday, 6 December 2017

खोया खोया चाँद!



है अँधेरा बहुत आज 
रौशनी कहीं भी नहीं 

बादलो में जा छुपा है वो कहीं 
उसे शायद मेरी खबर ही नहीं 

सदियों से लम्बी लगती ये रातें 
चंद करवटों में सिमटती ही नहीं 

आके ज़रा सी तसल्ली वो दे दे 
क्या उस खुदा को इतनी फुर्सत भी नहीं 

आवारा कब तक फिरें इन गलियों में 
मंजिलो का अब तक कोई इशारा ही नहीं 

खोया खोया  है चाँद जरूर आज 
मग़र अब हर रात अमावस्या की काली रात भी तो नहीं !



 Photograph: clicked at Khurai,MP ,India

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