है अँधेरा बहुत आज
रौशनी कहीं भी नहीं
बादलो में जा छुपा है वो कहीं
उसे शायद मेरी खबर ही नहीं
सदियों से लम्बी लगती ये रातें
चंद करवटों में सिमटती ही नहीं
आके ज़रा सी तसल्ली वो दे दे
क्या उस खुदा को इतनी फुर्सत भी नहीं
आवारा कब तक फिरें इन गलियों में
मंजिलो का अब तक कोई इशारा ही नहीं
खोया खोया है चाँद जरूर आज
मग़र अब हर रात अमावस्या की काली रात भी तो नहीं !
Photograph: clicked at Khurai,MP ,India

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