वो नहीं है इसका गम न हो

वो थी ये वजह शुक्रगुज़ार होने को क्या कम है ?

दुनिया से पर्दा रोशनियों का बुझना तो नहीं

क्योंकि चिराग तो यूँ बुझाया गया है

कि सुबह होने को है।

~ रविंद्रनाथ टैगोर

Saturday, 25 November 2017

The one inside me!


खोज सके
वो पाताल हूँ  मैं
माप सके
वो आकाश हूँ मैं
सरहद सीमाओं से परे
हवाओं सा आज़ाद हूँ मैं!

गीता का ज्ञान
गंगा का पावन स्नान हूँ मैं
क़ुरान की तालीम
मक्का मदीना की अज़ान हूँ मैं
धर्म जात के बंधनो से परे
सबसे बड़ा विद्वान हूँ मैं!

शतरंज का मोहरा नहीं
मोहरे की चाल हूँ मैं
झुक जाये सामने जिसके हर गर्दन
वो शूरवीर तलवार हूँ मैं
वाद विवाद से परे
काल खंड का सर्वश्रेष्ठ लेखक हूँ मैं!

पर्वतो से विशाल
समंदर से गहरा
हर एक कल्पना से परे
अदृश्य अज्ञात अनोखा एहसास हूँ मैं!

ण में लीन
क्षण क्षण में विलीन
समय चक्र से परे
आदी और अंत का मिलाप हूँ मैं!


 Photograph: clicked at Pondicherry ,India

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