बर्फ-सा जम गया है खून तेरा,
क्रांति
की नदियाँ क्यों आज निकलती नहीं ?
चारदीवारी
में कैद कब तब रहेगा,
तेरा
बिना कोई हुकूमत कभी हिलती नहीं!
कितनी
सदियों से है मुझे इंतज़ार तेरा,
तुझे
है कि जन्नत से फुर्सत मिलती नहीं !
इतिहास
से चर्चे तेरे सुने कई मग़र ,
मेरे
अपने क़िसी किस्से से गुफ्तगू हुई ही नहीं!
हो
रहा जश्न आज़ादी के नाम पे ,
इंकलाब
की गोलियां क्यों आज चलती नहीं ?
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