दिल के समंदर में
भावनाओ की लहरे
कागज़ की कश्ती
जैसे तुम कोई साहिल!
कभी
कभी
लगता
है
तुम
मेरी
कोई
कविता
तो
नही
घंटो
सोचता
हूँ लिखने में
जैसे
तुम्हारे
बारे
में
सोचा
करता
हूँ
लफ्ज़ों
को
लय
के
धागे
में
पिरोता हूँ
जैसे
तुम्हारे
इशारों
के
नज़रानो
से
ख्वाबो
की
पोटली
बनाता
हूँ
अब
मेरी
कविता
काल्पनिक
ही
तो
है
तुम
मेरी
कही
कोई
ख्वाब
तो
नही
डर
लगता
है
मेरी
कविताओं
को
कोई
पढ़
न
ले
इसलिए
डायरी
में
सहेज
कर
रखा
हुआ
है
डर
लगता
है
कि
मेरी
नींद
टूट
न
जाये
इसलिए
तुम्हे
यादों
में
महफ़ूज़
रखा
हुआ
है
तुम्हे
कविता
सुनाने
का
खयाल
भी
ठीक
नही
लगता
शायद
तुम्हे
मेरी
कविता
पसंद
न
आये
और
मेरी
कविता
को
तुम
रास
न
आओ!
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