वो नहीं है इसका गम न हो

वो थी ये वजह शुक्रगुज़ार होने को क्या कम है ?

दुनिया से पर्दा रोशनियों का बुझना तो नहीं

क्योंकि चिराग तो यूँ बुझाया गया है

कि सुबह होने को है।

~ रविंद्रनाथ टैगोर

Saturday, 29 July 2017

इश्क़!


                होकर तुम्ही से गुज़री ये नज़रे 
              नज़रो का जैसे तुम सवेरा

            है इस घडी में कैसा ये जादू 
            एक दिखता बस तेरा चेहरा
                   
             तुम ही सम्भालो,तुम ही जानो 

                ये दिल तो है अब तेरा

                  तेरा हुआ जुबाँ का हर लफ्ज़ 
               कुछ भी रहा न मेरा

        

आवारगी को मिला सुकून

जब चेहरे पे तेरे मुस्कान खिली



धूप में था लम्बा सफर

मिलकर है छाँव मिली





मिले जो जबसे
मेरे हुए हो

पिघल गया
कुछ तुझमे घुल गया

 बस इतना
कि मैं मैं रहा

और तू तू रह गया!





Photographs: clicked at Guest House, Singrauli ,India


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