आलसय परमो धर्मा! |
थोड़ी सी धीमी
थोड़ी आलसी हो गयी
ज़िन्दगी
आजकल सरकारी हो गयी।
ख्वाबो के टेंडर निकल रहे
नींद ने इनका ठेका ले लिया
हाय रे ये सुस्ती
हर काम पे भारी हो गयी
जिंदगी
आजकल सरकारी हो गयी।
फाइलों में अटकी हर ख्वाहिश
घूम घूम कर बेहाल हो गयी
हाय रे रूपईया
तेरे चक्कर में जेब भीखारी हो गयी
जिंदगी
आजकल सरकारी हो गयी।
सुबह से शाम बैठे रहे ठलुआ
ठलुआ बैठे-बैठे अक्ल कूडादान हो गयी
हाय रे कुर्सी
तेरी हालत बहुतई नाजुक हो गयी
जो साहब की तोंद फूल के फुटबॉल हो गयी
“
जिंदगी
आजकल सरकारी हो गयी। “
Photograph: Internet
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