वो नहीं है इसका गम न हो

वो थी ये वजह शुक्रगुज़ार होने को क्या कम है ?

दुनिया से पर्दा रोशनियों का बुझना तो नहीं

क्योंकि चिराग तो यूँ बुझाया गया है

कि सुबह होने को है।

~ रविंद्रनाथ टैगोर

Sunday, 27 August 2017

याद है !?


याद है 
भीड़ में मुझे निहारती तुम्हारी आँखें 
नज़र चुराता हुआ मैं

 याद है 
गुलाबी चाशनी में भीगे हुए तुम्हारे होंठ 
मचलता हुआ मैं 

याद है 
तुम्हारी उलझी हुई जुल्फ़े 
उलझा हुआ सा मैं 

याद है 
तुम्हारे कोमल बदन का मर्म एहसास 
पिघला हुआ मैं 

याद है 
चुम्बक सा तुम्हारा आकर्षण
लोहा हुआ मैं 

याद है 
दो रोज़ का वो खूबसूरत सफर 
फिर तन्हा हुआ मैं 

याद है 
हाँ, मुझे सब याद है 
~ क्या तुम्हे याद है ?

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