वो नहीं है इसका गम न हो

वो थी ये वजह शुक्रगुज़ार होने को क्या कम है ?

दुनिया से पर्दा रोशनियों का बुझना तो नहीं

क्योंकि चिराग तो यूँ बुझाया गया है

कि सुबह होने को है।

~ रविंद्रनाथ टैगोर

Saturday, 21 October 2017

जय हिंद!

देश हमारा सो रहा है
बच्चा घर पे रो रहा है
गाय हमारी माता है
हमको कुछ नही आता है
जोर से बोलो
जय हिंद! जय हिंद!

नेता पैसा खा रहा है
फिरंगी मज़े उड़ा रहा है
नोट बंदी, GST जाने क्या क्या हुए जा रहा है
मित्रों! हमको कुछ समझ नही रहा है
जोर से बोलो
जय हिंद! जय हिंद!

छुक छुक हुई पुरानी है
बुलेट का देखो जमाना है
हवा में उड़ रहा अम्बानी है
बाकी गरीब तो धक्के खा रहा है
जोर से बोलो
जय हिंद! जय हिंद!

जब सरकार का ही कोई आधार नहीं
फिर काहे सबका आधार बनवा रहा है
पेट्रोल डीजल के बढ़ गए देखो दाम है
                                                  देश में आजकल एक ही गुंडा बदनाम है
 जोर से बोलो
जय हिंद! जय हिंद!

हवा में घुल रहा जहर है
                                                          फिर भी पब्लिक धुंआ उड़ा रहा है
 घर में सबके डिस्टेंपर हो रहा लाल है
हरा तो हो गया आजकल ईद का चाँद है
अरे! तुम भी बोलो 
 जय हिन्द!

आगे वाले जय हिंद!
पीछे वाले जय हिंद!
सारे बोलो
जय हिंद! जय हिंद!





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