वो नहीं है इसका गम न हो

वो थी ये वजह शुक्रगुज़ार होने को क्या कम है ?

दुनिया से पर्दा रोशनियों का बुझना तो नहीं

क्योंकि चिराग तो यूँ बुझाया गया है

कि सुबह होने को है।

~ रविंद्रनाथ टैगोर

Saturday, 27 July 2013

शर्मा जी की प्रेम कथा l

दास्ताँ ये अजीब है,ये घटना दुर्घटना के करीब है। 
शर्मा जी को हो  गया किसी से प्यार,किन्तु बीच में आ गयी उनके पिताजी की तलवार।।

पिताजी थे बड़े कड़क, बात बात पर जाते थे भड़क। 
पिताजी ने कर दी साफ़ मना,पर शर्मा जी तो थे होने वाली mrs. शर्मा पे फ़ना।। 

पिताजी और शर्मा जी में हो गयी बातचीत बंद,शर्मा जी तो बस एक ही बात कहते mrs. शर्मा ही है मेरी पहली और आखरी पसंद।
इस बात पे बड गया पिताजी का पारा, कहा मैं न आजतक किसी से हारा।। 

शर्मा जी ने लगाया अपनी माताजी को फ़ोन, कहा खतरनाक हो गयी है पिताजी की टोन। 
माताजी के चेहरे पे मुस्कान खिली,सोचा इस नालायक को कोई तो मिली।।

आई माताजी पिताजी को समझाने, पिताजी तो फिर भी न माने।
टूट गए शर्मा जी के ख्वाब सारे ,आजतक है शर्मा जी उनके चक्कर में कुंवारे।।

ये थी मेरे प्यारे शर्मा जी की प्रेम कथा,जो बन गयी एक व्यथा ।।

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