वो लोग बहुत ख़ुशक़िस्मत थे
जो
इश्क़ को काम समझते थे
या
काम से आशिक़ी करते थे
हम
जीते जी मसरूफ़ रहे
कुछ
इश्क़ किया कुछ काम किया
काम
इश्क़ के आड़े आता रहा
और
इश्क़ से काम उलझता रहा
फिर
आख़िर तंग आकर हम ने
दोनों
को अधूरा छोड़ दिया!
- फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
अगर दो चार होती ज़िन्दगी
सारे
शौक पूरे करता
पहली
में अपनी मेहबूबा से इश्क़ लड़ाता
दूसरी
में कुछ काम काज करता
तीसरे
में हिमालय की सैर करता
और
चौथरी में बस आराम फरमाता
अब
एक ही तो है ज़िंदगी
और
शौक बहुत से
बहुत
से शौक का बोझा लिए
ये
छोटी सी ज़िंदगी
हौले-हौले
चलती है
कान
में अक्सर धीरे से फुसफुसाती
कितना
वजन लाद दिए
कुछ
कम करने को कहती है
हम
ठहरे खड़ूस बहुत
उसकी
एक न सुनते है
वो
भी है तेज मगर
एक
भी शौक पूरा नहीं करती है
काश!
दो
चार ज़िन्दगी होती
सारे
शौक पूरे करता!
Photograph: clicked at Guest House, Singrauli ,India
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